हरछठ व्रत कथा – Harchat ki Katha Hindi Mein | Harchat Vrat Katha in Hindi

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हरछठ व्रत कथा - Harchat ki Katha Hindi Mein | Harchat Vrat Katha in Hindi

हरछठ व्रत कथा (Harchat Vrat Katha in Hindi)

हिंदू धर्म में हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ का त्योहार मनाया जाता है। इसे हलषष्ठी, कमरछठ अथवा ‘छठ महारानी का व्रत’ भी कहा जाता है। हरछठ का व्रत संतान की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।

Harchat

मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। बलराम जी का शस्त्र ‘हल’ है, इसीलिये इस दिन महिलाओं को हल चले हुये जमीन में चलना और उसमें उत्पन्न सामग्री को उपयोग करना मना रहता है ।

Harchat Vrat पूजा विधि

हरछठ के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। यह व्रत वही स्त्रियाँ करती हैं जिनको पुत्र होता है। जिनको केवल पुत्री होती है, वह यह व्रत नहीं करती है। इस शुभ दिन दीवार पर गाय के गोबर से हरछठ का चित्र भी बनाया जाता है। इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं। आज कल बाजार में हरछठ माता का बना बनाया चित्र भी मिलने लगा है।

हरछठ बनाने में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा में सात प्रकार के भुने हुए अनाज का भोग लगाया जाता है। पूजा के लिए सात तरह के अनाज जैसे धान, गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर चढ़ाएं जाते है। इस व्रत में महिलाएं प्रत्येक पुत्र के आधार पर छह छोटे मिट्टी के बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या सूखे मेवे भरती हैं। अंत में हरछठ की कथा सुनें और विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें।

स्त्रियाँ पूजन के समय कुश के पेड़ में गाँठ बाँधती है। इसके लिये स्त्रियाँ कुश लगे हुये स्थान पर जाती है अथवा घर में ही किसी स्थान या गमले में कुश लगाकर गाँठ बाँधती है। पूजा के बाद के महिलाएं भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर खाती हैं ​इस दिन महिलाओं के द्वारा इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पचहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं।

केवल वृक्ष पर लगे खाद्य पदार्थ के ही सेवन की अनुमति होती है। विशेष रूप से महुए के फल का सेवन इस व्रत में किया जाता है। इस व्रत में गाय का दूध व दही इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है इस दिन महिलाएं भैंस का दूध ,घी व दही इस्तेमाल करती है। इस व्रत को करने से व्रती को धन, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है, इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।

Harchat Vrat कथा ॥ 1 ॥

मथुरा के राजा कंस अपनी बहन देवकी को विवाह उपरांत विदा करने जा रहे थे तो आकाशवाणी के वचन सुन कर कि देवकी का आठवाँ गर्भ तेरी मृत्यु का कारण बनेगा, अपनी बहन-बहनोई को कारागार में डाल दिया। वासुदेव-देवकी के छह पुत्रों को एक-एक कर कंस ने मार डाला। जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद जी वासुदेव और देवकी से मिलने पहुंचे और उनके दुख का कारण जानकर देवकी को हलषष्ठी देवी के व्रत रखने की सलाह दी। देवकी ने नारद जी से हलषष्ठी व्रत की महिमा व कथा पूछी तो नारद ने पुरातन कथा कहना प्रारम्भ किया कि-

चन्द्रव्रत नाम का एक राजा हुआ, जिनकों एक ही पुत्र था। राजा ने राहगीरों के लिए एक तालाब खुदवाया किन्तु उसमे जल न रहा, सूख गया। राहगीर उस रास्ते गुजरते और सूखे तालाब को देखकर राजा को गाली देते थे। इस खबर को सुनकर राजा दुखित हुआ कि मैंने तालाब खुदवाया, मेरा धन व धर्म दोनों ही व्यर्थ गया। उसी रोज रात राजा को स्वप्न में वरुण देव ने दर्शन देकर कहा कि यदि तुम अपने पुत्र का बलि तालाब में दोगे तो जल भर जाएगा।

सुबह राजा ने स्वप्र में कही बात दरबार मे सुनाया और कहा कि मेरा धन व धर्म भले ही व्यर्थ हो जाए पर मैं अपने पुत्र की बलि नहीं दूंगा। यह बात लोगों से होता हुआ राजकुमार तक पहुंचा तो वह सोचने लगा कि यदि मेरी बलि से तालाब में पानी आ जाए तो लोगों का भला होगा, यह सोचकर राजकुमार अपनी बलि देने तालाब में बैठ गया। अब वह तालाब पानी से लबालब भर गया, जल के जीव-जंतुओं से तालाब परिपूर्ण हो गया। एकलौते पुत्र के बलि हो जाने से राजा दुखी होकर वन को चला गया।

वहाँ पाँच स्त्रियाँ व्रत कर रही थी जिसे देखकर राजा ने पुछा आप लोग कौन सा व्रत और क्यों कर रही हो पूछने पर स्त्रियों ने हलषष्ठी व्रत की सम्पूर्ण विधि- विधान बतलाई। उसे सुनकर राजा वापिस नगर को गया और अपनी रानी के साथ उस व्रत को किया। व्रत के प्रभाव से राजपुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया। राजा परिवार सहित हलषष्ठी माता के जयकार कर सुख पूर्वक निवास करने लगा।

Harchat Vrat कथा ॥ 2 ॥

अब नारदजी ने देवकी से हलषष्ठी व्रत की अन्य कथा कहना शुरू किया कि उज्जैन नगरी में दो सौतन रहती थी। एक का नाम रेवती तथा दूसरी का नाम मानवती था रेवती को कोई संतान न था, जबकि मानवती के दो पुत्र थे। रेवती अपने सौत के बच्चों को देखकर हमेशा सौतिया डाह से जलती रहती और उनके पुत्रों को मारने का जतन ढूंढती रहती थी। एक दिन उन्होने मानवती को बुलाकर कहा कि बहन आज तुम्हारे मायके से कुछ राहगीर मुझसे मिले थे उन्होने बताया कि तुम्हारे पिताजी बहुत बीमार है और वह तुम्हें देखना चाहता है।

पिता की बीमारी को सुनकर मानवती दुखी हुई। रेवती कहने लगी कि बहन तुम शीघ्र अपने पिता से मिलने चली जाओ, तुम्हारे आने तक मैं बच्चों का ध्यान रखूंगी। सौत के बात को सच मान और अपने पुत्रों को रेवती के हाथों सुरक्षित देकर मानवती पिता से मिलने मायके चली गई। अब रेवती बच्चों को मारने का अच्छा मौका जान कर उन दोनों बच्चों को मारकर जंगल में फेंक आयी।

इधर मानवती जब मायके पहुंची तो पिता को स्वस्थ देखकर पिता से अपनी सौत की कही बातों को कह कुशल-क्षेम पूछती है। अब मानवती के पिता ने अनहोनी के संदेह से पुत्री को जाने को कहते है, किन्तु मानवती के माता ने कहा कि पुत्री आज हलषष्ठी माता का व्रत का दिन है अतः तुम भी पुत्रों की दीर्घायु की कामना से यह व्रत कर आज के जगह कल चली जाना। माता की सलाह मान मानवती पुत्रों की स्वास्थ कामना से हलषष्ठी माता का व्रत धारण कर दूसरे दिन अपने घर जाने को निकली।

रास्ते में वही जंगल पड़ा और वहाँ अपने बच्चों को खेलते देख उनसे पूछती है कि तुम लोग यहाँ कैसे पहुंचे। तब पुत्रों ने बताया कि आपके चली जाने पर हमारी दूसरी माता रेवती ने मारकर यहाँ फेंक दिया था कि तभी एक दूसरी स्त्री हमें फिर से जिंदा कर गई। अब मानवती को समझते देर न लगी कि यह सब माता हलषष्ठी की कृपा से संभव है और माता की जयकार करती हुई घर को गई। नगर में मानवती के पुत्रों को पुनः: जीवित देख और माता हलषष्ठी की महिमा जान सभी स्त्रियाँ हलषष्ठी व्रत करने लगी।

Harchat Vrat ॥ 3 ॥

नारदजी ने देवकी से हलषष्ठी व्रत की और कथा कहना प्रारम्भ किया कि दक्षिण में एक सुंदर नगर है वहाँ एक बनिया अपनी भार्या के साथ रहता था। दोनों पति-पत्नी स्वभाव से बहुत अच्छे व संस्कारी थे। बनिया की पत्नी गर्भवती होती, संतान को जन्म देती थी, किन्तु भाग्यवश उनके संतान कुछ समयोपरांत मर जाते थे। इस प्रकार एक-एक करके बनिया की पत्नी के छः संतान मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस कारण दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी होकर मरने की उद्देश्य लेकर घर से वन की ओर चले गए।

वहाँ जंगल में एक साधु से उनकी भेंट हुई तो उन्होने साधु से अपनी व्यथा कह सुनाई। साधु ने ध्यान लगाकर देखा की बनिया के संतान कहाँ है। साधु ध्यान में यम, कुबेर, वरुण, इंद्रादि लोक में ढूंढा किन्तु जब वहाँ बनिया के बच्चे नहीं दिखें, तो साधु ब्रह्म लोक को गए। वहाँ साधु ने बनिया के सारे संतान को देख कर उन्हें अपने माता-पिता के पास लौटने का आग्रह किया।

बच्चों ने वापिस लौटने से मना करते हुए कहा कि मुनिवर इससे पूर्व हम कई बार जन्म ले चुके हैं। हम किस-किस माता-पिता को याद रख उनके पास जाएँ। हम जन्म-मृत्यु और गर्भ के चक्कर से अब मुक्त हैं अतः अब नहीं जाना चाहते। तब साधु ने बनिया को दीर्घजीवी संतान प्राप्ति का उनसे उपाय पूछा। उन आत्माओं ने कहा कि यदि बनिया और उनकी पत्नी माता हलषष्ठी का व्रत रख पूजन, कथा श्रवण कर अपने पुत्र को ब्रतोपरांत जल से भीगा कपड़ा (पोठा) लगाए तो उनका यह बालक दीर्घजीवी होगा।

उन आत्माओं से इस प्रकार सुन साधु ध्यान से वापिस आकर बनिया से हलषष्ठी व्रत, कथा, नियम आदि को बताया। साधु से इस विधि-विधान को सुन दोनों पति-पत्नी घर को गए। समयोपरांत जब हलषष्ठी व्रत का दिन आया तो उन्होंने व्रत रखा तथा संतान प्राप्ति का वर मांगा। माता हलषष्ठी की कृपा से अब बनिया की पति गर्भवती हुई और एक सुंदर संतान को जन्म देती है।

अगले व्रत पर उन्होने साधु के बताए अनुसार अपने पुत्र को पोता मारती है माता की कृपा से अब उनके संतान ने दीर्घ आयु को प्राप्त किया। बनिया का परिवार प्रसन्ता पूर्वक जीवन यापन करने लगा।

Harchat Vrat कथा ॥ 4 ॥

एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अत्यंत शोक संतप्त भाव से कहा- “हे देवकी नंदन । सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मरणोपरांत, शोक संतप्त है व अभिमन्यु की भार्या उत्तरा के गर्भ की संतान भी, ब्रह्मास्त्र के तेज से दग्ध हो रही है, क्योंकि दुष्ट अश्वत्थामा ने गर्भ को निश्तेज कर दिया। द्रौपदी भी अपने पाँच पुत्रों के मारे जाने से अति दुखी है। अतः इस महादुःख से उत्थान हेतु कोई उपाय बताएं।”

तव श्री कृष्ण जी ने कहा- राजन। यदि उत्तरा मेरे बताये इस अपूर्व व्रत को करे तो गर्भ का निश्तेज शिशु पुनर्जीवित हो जाएगा। यह व्रत जो भाद्रपद की कृष्ण पक्ष षष्ठी पर, भगवान शिव-पार्वती, गणेश व स्वामी कार्तिकेय की विधि विधान द्वारा पूजन, पुत्र-पौत्र की अल्पायु व् शोक के महादुःख से मुक्ति प्रदाता है।

इस व्रत के संदर्भ में श्री कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को कथा बतलाते हैं कि- पूर्वकाल में सुभद्र नाम का राजा था, जिनकी रानी का नाम सुवर्णा थी। राजा-रानी को एक हस्ती नामक पुत्र था। एक बार राजपुत्र हस्ती धाय माँ के साथ गंगाजी स्नान करने गया। बाल स्वभाव वश हस्ती जल में खेलने लगा। तभी एक ग्राह ने उसे खिचते हुए जल के अंदर ले गया। इसकी सूचना धाय माँ ने जाकर रानी सुवर्णा से कह सुनायी।

इस पर रानी ने क्रोधवश धाय के पुत्र को धधकते हुए आग में डाल दिया । पुत्र शोक से व्याकुल धाय माँ निर्जन वन को चली गई और वन में एक सुनसान मंदिर के पास रहने लगी। वन में सूखा तृण, धान्य, महुआ आदि जो मिलता खाती और मंदिर में विराजित शिव-पार्वती, गणेशजी की पूजन कर दिन व्यतीत करने लगी। इधर नगर में एक अदभूत घटना घटित हुआ कि धाय माँ का पुत्र आग कि भट्टी से जीवित निकल आया और खेलने लगा।

यह खबर पूरे नगर में फैलते हुए राजा-रानी के पास पहुंची तो उन्होंने इस घटना के विषय में पुरोहितों से पूछा, तभी सौभाग्य से वहां दुर्वासा ऋषि पहुंचे। राजा-रानी ने ऋषि का पूजन कर धाय पुत्र के जीवित हो जाने का कारण पूछा। तो दुर्वासाजी ने कहा कि राजन आपके डर से धाय जंगल में एकांत हो कर व्रत की, यह सब उसी व्रत का प्रभाव है। अब राजा-रानी सभी नगर वासियों के साथ दुर्वासाजी की अगुवाई में उस जंगल में धाय के पास जाकर उस व्रत के विषय में अधिक जानकारी पूछी।

तब धाय ने कहा कि राजन में पुत्र शोक से दुखित हो कर यहाँ रहने लगी और यहाँ व्रत ग्रहण कर भगवान शिव-पार्वती, गणेशजी व स्वामी कार्तिकेय का पूजन कर सूखा तृण, धान्य, महुआ आदि खाकर रहने लगी। तब रात को मेरे स्वप्न में मुझे शिव परिवार के दर्शन हुए और तुम्हारा पुत्र जीवित हो जायेगा ऐसा वरदान दिया। अब रानी ने व्रत की विधि-विधान को पूछा तो दुर्वासाजी ने हलषष्ठी व्रत की सम्पूर्ण विधि-विधान बतलाया।

राजा-रानी ने हलषष्ठी व्रत की महिमा जानकर व्रत को किया। व्रत के प्रभाव से राजपुत्र हस्ती ग्राह के चंगुल से छूट कर खेलते हुए नगर आया। अपने पुत्र को पाकर राजा-रानी सुखी हुऐ और धाय भी पुत्र के साथ प्रसत्र होकर निवास करने लगी। वही बालक हस्ती आगे चलकर परम प्रतापी हुआ और अपने नाम से हस्तिनापुर को बसाया।

इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से हलषष्ठी व्रत की महिमा का ज्ञान देते हुए कहा कि हलषष्ठी व्रत कथा पहले नारद जी से सुन मेरी माता देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया जिसके प्रभाव से उनके आनेवाले संतान की रक्षा हुई। अब भगवान श्री कृष्ण से सुन युधिष्ठिर ने इस व्रत को उत्तरा द्वारा करवाया, व्रत के प्रभाव से उत्तरा का अश्वत्यामा द्वारा नष्ट हुआ गर्भ पुनः जीवित हो गया तथा प्रसव पश्चात बालक का जन्म हुआ, जो कालांतर में राजा परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ।

Harchat Vrat कथा ॥ 5 ॥

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

Harchat Vrat कथा ॥ 6 ॥

एक बार कांशीपुरी में देवरानी व जेठानी रहती थी। देवरानी का नाम तारा व जेठानी विद्यावती थी। दोनों ही नाम अनुरुप तारा उग्र स्वभाव तथा विद्यावती अति दयालु थी। एक दिन दोनों ही ने खीर पका ठंडा करने के लिए खीर को आँगन में रख दी और बातें करने अंदर बैठ गई। तभी दो कुत्ते खीर देख खाने लगे। अब आवाज सुन दोनों देवरानी व जेठानी बाहर आई तो अपनी खीर को कुत्तों को खाते देखा।

विद्यावती अपनी खीर को जूठन जान बचा शेष को भी कुत्ता के सामने पुनः डाल आई और तारा ने दूसरे कुत्ते को एक कमरे में बंद कर खूब मारने लगी, जैसे-तैसे वह कुत्ता अपनी जान बचाकर बाहर भागता है। दूसरे दिन दोनों कुत्ता एक जगह मिलते हैं और एक दूसरे का हाल पूछते हैं। इस पर विद्यावती के खीर खानेवाला कुत्ता कहता है कि वह स्त्री बहुत ही दयालु थी उसने मुझे बाकी बचा खीर भी खाने की दी ईश्वर करे कि जब मेरा दूसरा जनम हो तो मैं उसी की संतान बनूँ और उनकी खूब सेवा करें।

अब दूसरा कुत्ता कहता है कि मैं भी उसी औरत का संतान बनूँ जिससे कि मैं उनसे बदला ले सकूँ। उस दिन हलषष्ठी व्रत था। तारा की मार से बेदम वह कुत्ता मर गया। अगली हलषष्ठी व्रत के दिन तारा ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के बाद वह बालक अगली हलषष्ठी व्रत के दिन मर गया। इसी प्रकार तारा ने एक- एक कर पाँच पुत्र को जन्म दिया। उनका पुत्र एक साल बाद हलषष्ठी व्रत के दिन मर जाता था। जिससे तारा दुखित होकर हलषष्ठी माता से प्रार्थना करने लगी।

उसी रात सपने में तारा ने वही कुत्ता देखा जो उसकी मार से मरा था। कुत्ते ने सपने में तारा से कहा कि मैं तुमसे बदला लेने के उद्देश्य में तुम्हारा पुत्र बनकर आता हूँ और मर कर पुनः जाता हूँ । जब तारा ने अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगा तो उस कुत्ते ने कहा कि तुम हलषष्ठी व्रत करो जिसमें तुम्हें दीर्घजीवी पुत्र की प्राप्ति होगी। सपने में कही विधि अनुसार तारा ने अगली बार हलषष्ठी व्रत को किया और माता से आशीर्वाद मांगा।

हलषष्ठी माता की कृपा से तारा ने दीर्घजीवी संतान को जन्म दिया और प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन करने लगी। इधर विद्यावती ने भी हलषष्ठी व्रत कर माता की कृपा से एक सुंदर, सुशील पुत्र की जन्म दिया और सुख-पूर्वक निवास करने लगी।

Harchat Vrat कथा॥ 7 ॥

अचानकपुर में एक राजा अपने परिवार सहित रहता था। वह प्रजा के सुख- दुःख का बहुत ध्यान रखता था । उसके राज्य में सभी सुखी थे । राजा अपने राज्य के हर गाँव में तालाब-कुआँ बनवाता रहता था लेकिन सभी तालाब कुआँ सदैव सूखे ही बने रहते थे । इस वजह से राजा हमेशा चिंतित रहता था कि ऐसा कोई तो उपाय होगा कि जिसके करने से पानी की समस्या का निदान हो जायेगा ।

एक दिन राजा अपने दरबार में पानी के विषय में मंत्री एवं सलाहकारों से चर्चा कर रहा था कि अचानक एक आकाशवाणी होती है “हे राजा । तुम अपने इकलौते पुत्र की बलि दोगे तभी तुम्हारी इस समस्या का हल होगा, वरना तुम ऐसे ही पानी के लिये चिंतित रहोगे ।” इस आकाशवाणी को सुनकर दरबार में बैठे सभी लोगों को आश्चर्य होता है और सभी लोग दुःखी हो जाते हैं। सभी सोचते हैं कि यदि राजकुमार की बलि दे दी जायेगी तो राजा का वंश ही खत्म हो जायेगा ।

रात में राजा विचार करता है कि यदि मैं अपने बेटे के बेटे (पोते) जो अभी दो माह का है की बलि दे दूँ तो कैसा रहेगा । इससे आकाशवाणी की बात भी पूरी हो जायेगी और मेरा वंश भी बच जायेगा क्योंकि मेरे बेटे के जीवित रहने से भविष्य में और भी पोतों का जन्म हो सकता है । फिर तो राजा अपने मन में यही निश्चय करके सो जाता है । अगले दिन हलषष्ठी का व्रत होता है । राजा के बेटे की बहू हलषष्ठी का व्रत रखती है ।

इधर राजा सोचता है कि मैं बहू से उसके पुत्र को बलि के लिये कैसे माँगूँ ? कोई माँ अपने पुत्र को बलि के लिये कैसे दे सकती है। वो भी आज के दिन जबकि मातायें अपने पुत्र के सुख-सौभाग्य की कामना के लिये व्रत कर रही हैं। राजा मन में विचार करता है कि क्यों न मैं बहू को किसी बहाने से उसके मायके भेज दूँ और पोते को छोड़ जाने को कह दूँ । जब बहू चली जायेगी तब मेरा काम बन जायेगा । बाद में बहू को कोई बहाना बना दूँगा ।

यह विचार राजा को उचित लगता है और वह बहू के पास जाकर कहता है- “बहू ! अभी तुम्हारे मायके खबर आई है कि तुम्हारी माँ बहुत बीमार है, तुमको देखना चाहती है। तुम अपनी माँ को देखने चली जाओ, पोते को मेरे पास छोड़ जाओ ।” यह सुनकर बहू कहती है- “पिताजी ! आज तो हलषष्ठी है, आज मैं कैसे जा सकती हूँ। आज के दिन तो हल जुते जमीन पर चलना मना रहता है।” तब राजा कहता है- “तुम चलकर नहीं जाओगी- मैं पालकी सजवा देता हूँ, तुम उसमें बैठकर जाना ।”

बहू के जाते ही राजा अपने पोते को सागर के पास ले जाकर बलि चढ़ा देता है । उसके बाद उसे आत्मग्लानि होती है कि वह अपनी बहू से क्या कहेगा। उधर बहू जब अपने मायके पहुँचती है तो सभी महिलायें हलषष्ठी पूजा करने की तैयारी कर रही होती हैं । उसकी माँ भी पूजा करने को तैयार बैठी होती है। अपनी माँ को स्वस्थ देखकर बहू को बहुत खुशी होती है लेकिन आश्चर्य भी होता है कि ससुरजी ने ऐसा क्यों कहा ? उसके बाद सभी मिलकर हलषष्ठी देवी की पूजा करते हैं।

बहू भी पूजा करके व्रत का पारण कर कहारों के साथ वापस आती है। रास्ते में वह कहारों को कहती है- “हमारे ससुरजी ने जो सागर बनवाये हैं, उसी तरफ से लेकर चलना । मैं सागर में हाथ-मुँह धोकर ही घर जाऊँगी ।” कहारों को असमंजस होता है लेकिन बहू की जिद के कारण उधर ले जाते हैं, लेकिन उन्हें सागर में पानी भरा हुआ देखकर आश्चर्य होता है । वास्तव में, आकाशवाणी के अनुसार राजा के बलि देने से ही यह चमत्कार हुआ था । बहु सागर में उतरकर प्रणाम करती है और हाथ-मुँह धोकर आँचल फैलाती है।

आँचल में उसका बच्चा खेलते हुये आ जाता है । बहू को बहुत आश्चर्य होता है कि बच्चा यहाँ कैसे आ गया ? फिर दोनों घर पहुँचते हैं । यह सब हलषष्ठी माँ की कृपा से ही हुआ था । राजा अपनी बहू से माफी माँगता है लेकिन साथ में बच्चे को देखकर बहुत खुश होता है । राजा बहू को आशीर्वाद देते हुये कहता है कि यह तुम्हारे ही पुण्य प्रताप का नतीजा है । राजा कहता है कि जिस तरह बहू के आत्मविश्वास और श्रद्धा के कारण हमारे घर में खुशी आई है, वैसे ही हमारे राज्य में सभी प्रजाजनों के घरों में खुशी रहे ।

राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवाई कि अगले साल से हमारे राज्य में सामूहिक रूप से हलषष्ठी की पूजा होगी। जिस प्रकार हलषष्ठी माता की कृपा से राजा के घर में खुशियाँ आई, उसी प्रकार हलषष्ठी माता के व्रत से आप सभी लोगों के घर में भी सदैव खुशियाँ बनी रहें ।

!! धन्यवाद !!

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